वाहेगुरु का अर्थ और महत्व
वाहेगुरु का अर्थ और महत्व
“वाहेगुरु” सिख धर्म में परम पिता अकाल पुरख (ईश्वर) का नाम है। यह नाम सिखों के लिए सबसे पवित्र, सर्वोच्च और आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। “वाहेगुरु” एक गुरुमंत्र भी है, जिसका जाप सिख जीवन का अहम हिस्सा है।
“वाहेगुरु” शब्द की संरचना
“वाहेगुरु” चार अक्षरों से मिलकर बना है:
वाहे – अर्थ: अद्भुत, चमत्कारी, वाह!
गुरु – अर्थ: जो अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाए।
इस प्रकार “वाहेगुरु” का अर्थ है:
अद्भुत गुरु”, “चमत्कारी ईश्वर”, या “जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।”
वाहेगुरु सिमरन का अभ्यास
सिख धर्म में “वाहेगुरु” नाम के सिमरन (जप) को अत्यधिक महत्व दिया गया है। यह केवल एक नाम नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है, जो इंसान को परमात्मा से जोड़ने का मार्ग दिखाता है। जब एक सिख “वाहेगुरु” कहता है, वह ईश्वर की महिमा का गुणगान कर रहा होता है और अपनी आत्मा को उससे जोड़ने का प्रयास करता है।
गुरबाणी में उल्लेख
गुरु ग्रंथ साहिब में “वाहेगुरु” नाम की महिमा कई बार की गई है, जैसे:
> "वाहु वाहु गुरु गोबिंद सिंह, आपे गुर चेला।"
"वाहेगुरु वाहेगुरु करि मन, जीअ लए गुड़ पाय।"
निष्कर्ष
“वाहेगुरु” केवल एक शब्द नहीं, बल्कि सिख धर्म की आत्मा है। यह नाम हमें सिखाता है कि सच्चा ज्ञान और ईश्वर की प्राप्ति केवल सिमरन और भक्ति के मार्ग से ही संभव है। “वाहेगुरु” का जाप करना, ईश्वर को याद करना और उसकी रज़ा में जीना — यही सिख धर्म का मूल सार है।
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***Jeetu Gill, lande ke ***
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